पीजीआई डॉक्टर ऐसी दवाइयां लिख रहे हैं जो मिलती ही नहीं, मरीजों पर संकट

लखनऊ पीजीआई के डॉक्टर भी ऐसी दवाइयां लिख रहे हैं जो मिलती ही नहीं है। मरीज और तीमारदार संकट में हैं। परेशान हाल मरीज को मजबूरन बाजार का रुख करना पड़ रहा है। 

लखनऊ पीजीआई के डॉक्टर भी मेडिकल कॉलेज, जिला अस्पताल और सीएचसी के डॉक्टरों पर की राह पर चल निकले हैं। यहां के डॉक्टर भी मरीजों को ऐसी दवाइयां लिख रहे हैं, जो पीजीआई के हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड (एचआरएफ) के तहत संचालित स्टोर पर नहीं मिल रही हैं। परेशान हाल मरीज को मजबूरन बाजार का रुख करना पड़ रहा है। बाजार और एचआरएफ के स्टोर के रेट में जमीन आसमान का अंतर है। जो दवा एचआरएफ स्टोर पर 40 से 60 रुपये में मिल जाती है वही दवा बाजार में 100 रुपये की है।

हिन्दुस्तान की पड़ताल में पता चला कि डॉक्टर एचआरएफ की सस्ती दवाएं नहीं लिख रहे हैं। बल्कि वह मन पंसद कम्पनियों की दवाएं लिख रहे हैं। जबकि दवाओं का सॉल्ट वहीं होता है, लेकिन अधिकांश डॉक्टर कम्पनी बदल कर दवाएं लिखते हैं। जो दवाएं एचआएफ में उपलब्ध नहीं होती हैं। जबकि एचआएफ में एक हजार प्रकार की नामी कम्पनियों की 60 फीसदी तक सस्ती दवाएं और जरूरी उपकरण उपलब्ध हैं। यही वजह है कि मरीजों को संस्थान की सस्ती दवाओं का फायदा नहीं मिल पा रहा है। मरीज मजबूरी में संस्थान के बाहर रायबरेली रोड पर स्थित मेडिकल स्टोरों से महंगी दरों पर दवाएं खरीद रहे हैं। ओपीडी में यूपी समेत कई राज्यों व विदेशों के रोजाना नए और पुराने करीब 2500 मरीज आते हैं।

संस्थान के न्यूरोलॉजी, नेत्ररोग विभाग, ट्रामा सेंटर का आर्थो विभाग, इंडोक्राइनोलॉजी, गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी, पल्मोनरी मेडिसिन और सर्जरी समेत दूसरे विभागों के डॉक्टर बाहर की दवाएं लिखते हैं। इन विभागों के कई डॉक्टरों के पर्चे में लिखी दवाएं बाहर के कुछ खास मेडिकल स्टोर पर ही मिलती हैं। कुछ डॉक्टर मरीज को देखने के बाद बकायदा उस मेडिकल स्टोर का पता भी बताते हैं कि संस्थान के बाहर फला मेडिकल स्टोर पर दवा मिलेगी। संस्थान में भर्ती मरीजों से भी दवाएं मंगवायी जा रही हैं।

पीजीआई के बाहर स्थित एक दवा कारोबोरी के मुताबिक रोजाना करीब 40 लाख रुपये की दवाएं व अन्य जरूरी उपकरण की बिक्री है। जबकि संस्थान के एचआरएफ में रोज डेढ़ से दो लाख रुपये कैश में दवाएं बिकती हैं। एटीएम से ऑनलाइन, असाध्य व मुख्यमंत्री कोष (पीडी अकाउंट) के मरीजों को दवाएं मिलती हैं। जिनका पैसा संस्थान मरीज के पीडी अकाउंट से ले लेता है। 

पीजीआई के  चआरएफ (हॉस्पिटल रिवाल्विंग फंड) के मेडिकल स्टोर में उपलब्ध दवाएं 60 फीसदी तक सस्ती हैं। यहां देश की सभी नामी दवा कम्पनियों की  दवाएं उपलब्ध हैं। पीजीआई इन कम्पनियों से सीधे दवाएं खरीदता है। जिसकी वजह से मरीजों को सस्ती दरों पर दवाएं उपलब्ध होती हैं। संस्थान के सभी विभागों के प्रमुख की अध्यक्षता में गठित कमेटी की मंजूरी के बाद ही दवाएं खरीदी जाती हैं। यहां एक हजार प्रकार की दवाएं, इंजेक्शन, सर्जिकल उपकरण समेत, स्टंट आदि उपलब्ध हैं। इसके बावजूद डॉक्टर दवाएं बाहर की लिख रहे हैं।

उदाहरण: एक
लखनऊ के जानकीपुरम निवासी 46 वर्षीय अविनाश सिंह का पीजीआई में न्यूरोलॉजी विभाग में स्ट्रोक का इलाज चल रहा है। डॉक्टर सात दवाएं चलाएं रहे हैं। खून पतला करने वाली दवा छोड़कर अन्य सभी दवाएं संस्थान के बाहर एक निजी मेडिकल स्टोर से करीब पांच हजार रुपए प्रति माह खरीद रहे हैं। यह दवाएं किसी दूसरे मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती हैं।
उदाहरण: दो
आलमबाग की आरती का इलाज गैस्ट्रोइंट्रोलॉजी विभाग में चल रहा है। डॉक्टर पांच दवाएं चला रहे हैं। गैस और दर्द की दवा एचआरएफ में मिलती है। अन्य दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं।
उदाहरण: तीन- 
गोमतीनगर निवासी आनंद शुक्ला को डायबिटीज के साथ आंखों की दिक्कत है। उनका इलाज संस्थान के इंडोक्राइनालॉजी और नेत्ररोग विभाग में चल रहा है। दोनों विभाग की दवांए एचआरएफ में नहीं मिलती हैं। हर माह करीब चार हजार रुपये की बाहर से खरीदनी पड़ रही हैं।

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